कल तक जो नेता भाई-भाई के समान थे,
आज वही एक दूसरे कि शक्ल तक नहीं देखना चाहते ।
चुनाव की ब्यार कुछ ऐसी चल पडी,
सभी लगा रहे एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की झडी ।
टिकट न मिलने पर एक मंत्री ने बौखला कर कहा,
पैसे तो ले लिए अब टिकट देने में क्या है देरी ।
टिकट बांटने वालो ने हंस कर कहा मल्टीप्लेक्स में कभी पिक्चर नहीं देखी लगता है,
अरे भई पिक्चर अगर हिट हो तो टिकट खिडकी से नहीं ब्लैक में मिलता है ।
पढाई लिखाई कि इनके सामने बात मत करना,
थोडा मुशकिल से ही तो भाषण की स्क्रिप्ट याद कर पायेंगी ।
जब चूल्हा चौका ठीक से संभाल लेती है,
देश को संभालेंगी तो क्या गजब ढाऐंगी ।
गर सरकार हमारी बनी तो हम भूख, गरीबी और आतंकवाद का सफाया कर देंगे,
ये आशवासन कम और धमकी ज्यादा लगती है
ये आशवासन कम और धमकी ज्यादा लगती है
मतलब गर सरकार इनकी न बनी तो जन्ता भूखों ही मर जायेगी ।
Wednesday, April 1, 2009
मातृत्व
‘मातृत्व’ इस शब्द के सार को लिखकर बता पाना शायद ही संभव हो क्योंकि, मातृत्व एक ऐसा भाव है जिसमें असीम प्यार व्याप्त है जिसकी न तो कोई सीमा है और न ही कोई परिभाषा । यह एक ऐसा गुण है जो प्रत्येक स्त्री के अंदर पाया जाता है और मां बनने के पश्चात यह गुण और प्रगाण हो जाता है । असल में यदि मातृत्व के स्थान पर मां शब्द को रख दिया जाये तो कुछ गलत नहीं होगा क्योंकि मां के बिना मातृत्व की कल्पना तक करना असंभव है । बच्चा जब बोलना सीखता है तो उसके मुंह से निकलने वाला पहला शब्द मां होता है पर पहला शब्द पापा क्यों नहीं यह बात शायद सोचनीय न हो लेकिन यह एक आश्चर्य ही है कि इतने सारे शब्दों को सुनने के पश्चात भी हर बच्चा मां शब्द से ही अपने शब्दकोष की शुरूआत करता है । वास्तव में यह भाव जन्म से पहले व जन्म के बाद भी एक मां के अपनी संतान से मातृत्व के अटूट बंधन को दर्शाता है, और यह बंधन अटूट क्यों न हो मातृत्व का यह सुख पाने के लिए एक मां अपने जीवन तक को दाव पर लगा देती है । मां बनना उसके लिए नया जन्म लेने के बराबर होता है । मां के प्यार की छांव व उसके दुलार के बिना जीवन की कल्पना तक करना असंभव है । ऐसी जीवन दायिनी मां को मेरा शत-शत नमन......
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