Sunday, February 1, 2009

मंदी की मार या अपराध का सशक्तिकरण
यह ग्लोबल मंदी का दुष्प्रभाव ही है जिसके कारणवश विश्व में लाखों लोग अब तक अपनी अजीविका का साधन खो चुके है और नए साधन खोजने में असमर्थ है । परन्तु मंदी की मार के दुष्प्रभाव से अपराधीकरण का एक नया संकट उत्पन्न हो रहा है । अगर दिल्ली व एन सी आर की बात करें तो चोरी,लूटपाट और यहाँ तक कि हत्या के मामले इतने मामूली हो गये है कि आए दिन हम इनके बारे में अखबारों में पढ़ सकते है । कभी ब्लूलाईन बसों को चार बदमाश रोककर यात्रियों को लूट लेते है तो कभी रिक्शा या आटो से घर जा रहे लोगो को बाईक सवार बंदूक की नोक पर लूटकर फरार हो जाते है । गौरतलब बात यह है कि बदमाशो के मनसूबे इतने कामयाब है कि दिन हो या रात, भीड भाड हो या फिर रेड़ लाइट वो लोग अपने काम को अंजाम देकर बिना किसी खौंफ के गायब हो जाते है और अपने पीछे पुलिस को सिर्फ हाथ मलता छोड़ जाते है । दिन ब दिन इन बढती वारदातों से आम आदमी के मन में खौफ बैठना लाज़मी है । ग्लोबल मंदी के जिस दौर से अभी समस्त विश्व गुजर रहा है शायद उससे आने वाले कुछ वर्षों में वो उबर जाएगा परन्तु अपराध का सशक्तिकरण यदि इसी प्रकार होता रहा तो उससे उबर पाना शायद असंभव हो जाए ।




सरिता शर्मा
फयुच्युरिसटिक मीडि़या कम्यूनिकेशन सेंटर दिल्ली

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