आज के इस आधुनिक युग में हर मनुष्य चाहे वो स्त्री हो या पुरूष अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है और प्रत्येक मनुष्य इस के लिए भरसक प्रयत्न भी करता है ।
जिस प्रकार जीवन में रोटी, कपडा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यक्ताओ की पूर्ती के लिए पैसा कमाना अत्यन्त आवश्यक है उसी तरह मुख्य धारा से जुडे रहने के लिए अक्षर ज्ञान अति आवश्यक है क्योंकि बिना अक्षर ज्ञान के जीवन की विकटताऐं और अधिक बढ जाती है ।समस्त विश्व में भारत एक मात्र ऐसा देश है जो कि उसमें व्याप्त विविधताओ की वज़ह से जाना जाता है । परन्तु जिस प्रकार भारत के प्रत्येक राज्य के खान-पान,रहन-सहन व बोली में विविधता पाई जाती है उसी प्रकार सभी राज्यों के शिक्षा के स्तर में भी जमीन और आसमान का अंतर है । भारत के दक्षिण में स्थित राज्य केरल जहां कि कुल जनसंख्या का 90 फीसदी वर्ग शिक्षित है वहीं दूसरी और राजस्थान में केवल 40 फीसदी लोग ही शिक्षित है । पुरुष वर्ग व महिला वर्ग में भी शिक्षा के स्तर की खाई भी काफी गहरी है । राजस्थान व बिहार राज्यों में कई ईलाके ऐसे है जहां पर महिला वर्ग को शिक्षा से पूर्ण रूप से वंचित रखा गया है । मुख्यता देखा गया है कि शहरों में रहने वाले महिला वर्ग की अपेक्षा गांव में रहने वाली महिलाऐं शिक्षा में काफी पिछडी हुई है इस वर्ग में पिछडी जाति, पिछडी जनजाति व मध्यम वर्ग कि वो महिलाऐं है जो मुख्य धारा से या तो जुडना नहीं चाहती या फिर शायद मुख्य धारा में बहना उनके लिए संभव नहीं । भारत सरकार महिलाओं व बालिकाओं के शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए कई वर्षो से प्रयत्नरत है जिसके फलस्वरूप भारत व केन्द्र सरकार ने मिलकर 2001 में सर्व शिक्षा अभियान स्थापित किया । सर्व शिक्षा अभियान का उद्देशय 6 से 14 साल तक की सभी वर्ग के बच्चो को प्राथमिक शिक्षा उपलब्द्घ कराना है । इसके अलावा इस कार्यक्रम के तहत लडकियों,अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगो की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है । इस अभियान में बच्चो को निशुल्क पुस्तकें व ग्रामीण इलाकों में कम्पयूटर शिक्षा देने के लिए भी भरसक प्रयत्न किये जा रहे है । परन्तु इन सभी प्रयासो के बाद भी भारत में शिक्षा के स्तर का विकास काफी कम है । प्रत्येक दस वर्षों में भारत में शिक्षा का स्तर केवल 10 प्रतिशत ही बढता है जिसमें महिला वर्ग अभी भी पुरुष वर्ग से शिक्षा की इस दौड़ में काफी पीछे है । भारतीय सामाजिक दृष्टिकोण इस अंतर के लिए काफी हद तक जि़म्मेदार है । भले ही भारत की कमान श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जी के हाथ में हो जो स्वयं एक महिला है परन्तु भारत में अभी भी कई राज्य ऐसे है जहाँ लडकियों को पढाना तो दूर बल्कि उनका पैदा होना तक एक अभिशाप माना जाता है । यदि यही सोच भारतीयों के मन में रहीं तो भारत को एक विकसित देश बनने में न जाने और कितनी सदियां लग जाये ।
Tuesday, February 3, 2009
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राजस्थान में हालात अब उतने भी बुरे नहीं रहे, लड़कियाँ खूब पढ़ रही है, लड़कों से आगे।
ReplyDelete॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक
अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार, भाषा और प्रखर अभिव्यक्ति के कारण आपका शब्द संसार विशेष प्रभाव छोड़ने में समथॆ है ।
ReplyDeleteमैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
good ...nice attempt
ReplyDeleteउत्तम! ब्लाग जगत में पूरे उत्साह के साथ आपका स्वागत है। आपके शब्दों का सागर हमें हमेशा जोड़े रखेगा। कहते हैं, दो लोगों की मुलाकात बेवजह नहीं होती। मुलाकात आपकी और हमारी। मुलाकात यहां ब्लॉगर्स की। मुलाकात विचारों की, सब जुड़े हुए हैं।
ReplyDeleteनियमित लिखें। बेहतर लिखें। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मिलते रहेंगे।
Bahut Achcha...
ReplyDeletekabhi yahan bhi aaye...
http://jabhi.blogspot.com
अच्छा लिखा है आपने ! ब्लाग की दुनिया में आपका स्वागत है।
ReplyDeletenarayan narayan
ReplyDeleteachcche vicharo ko badhiya tareeke se shabdo me bandha hai.
ReplyDelete---------------------------------------"VISHAL"
Ssach likha hai badhaeee ....but akhir kahi na kahi....youth ko hi iske liye prayas karna chahiye .....
ReplyDeletemere blog par bhi kuch naya hai...swagat hai...
Jai Ho mangalmay ho
सुंदर अभिव्यक्ति
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