Wednesday, April 1, 2009

“न” लायक नेता

कल तक जो नेता भाई-भाई के समान थे,
आज वही एक दूसरे कि शक्ल तक नहीं देखना चाहते ।
चुनाव की ब्यार कुछ ऐसी चल पडी,
सभी लगा रहे एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की झडी ।

टिकट न मिलने पर एक मंत्री ने बौखला कर कहा,
पैसे तो ले लिए अब टिकट देने में क्या है देरी ।
टिकट बांटने वालो ने हंस कर कहा मल्टीप्लेक्स में कभी पिक्चर नहीं देखी लगता है,
अरे भई पिक्चर अगर हिट हो तो टिकट खिडकी से नहीं ब्लैक में मिलता है ।

पढाई लिखाई कि इनके सामने बात मत करना,
थोडा मुशकिल से ही तो भाषण की स्क्रिप्ट याद कर पायेंगी ।
जब चूल्हा चौका ठीक से संभाल लेती है,
देश को संभालेंगी तो क्या गजब ढाऐंगी ।

गर सरकार हमारी बनी तो हम भूख, गरीबी और आतंकवाद का सफाया कर देंगे,
ये आशवासन कम और धमकी ज्यादा लगती है
ये आशवासन कम और धमकी ज्यादा लगती है
मतलब गर सरकार इनकी न बनी तो जन्ता भूखों ही मर जायेगी ।

मातृत्व

‘मातृत्व’ इस शब्द के सार को लिखकर बता पाना शायद ही संभव हो क्योंकि, मातृत्व एक ऐसा भाव है जिसमें असीम प्यार व्याप्त है जिसकी न तो कोई सीमा है और न ही कोई परिभाषा । यह एक ऐसा गुण है जो प्रत्येक स्त्री के अंदर पाया जाता है और मां बनने के पश्चात यह गुण और प्रगाण हो जाता है । असल में यदि मातृत्व के स्थान पर मां शब्द को रख दिया जाये तो कुछ गलत नहीं होगा क्योंकि मां के बिना मातृत्व की कल्पना तक करना असंभव है । बच्चा जब बोलना सीखता है तो उसके मुंह से निकलने वाला पहला शब्द मां होता है पर पहला शब्द पापा क्यों नहीं यह बात शायद सोचनीय न हो लेकिन यह एक आश्चर्य ही है कि इतने सारे शब्दों को सुनने के पश्चात भी हर बच्चा मां शब्द से ही अपने शब्दकोष की शुरूआत करता है । वास्तव में यह भाव जन्म से पहले व जन्म के बाद भी एक मां के अपनी संतान से मातृत्व के अटूट बंधन को दर्शाता है, और यह बंधन अटूट क्यों न हो मातृत्व का यह सुख पाने के लिए एक मां अपने जीवन तक को दाव पर लगा देती है । मां बनना उसके लिए नया जन्म लेने के बराबर होता है । मां के प्यार की छांव व उसके दुलार के बिना जीवन की कल्पना तक करना असंभव है । ऐसी जीवन दायिनी मां को मेरा शत-शत नमन......

Thursday, February 19, 2009

भ्रष्टाचारी कौन............?

जब बात राजनीति की चलती है तो हमारे ज़हन में कई तसवीरें राजनीति को लेकर बनती है जैसे राजनीति बडी खराब चीज़ है...। अरे भाई मोटा पैसा कमाना हो तो उघोगपति क्या बनना राजनीति में शामिल हो जाओ इसमें हींग लगे न फिटकरी और रंग चौखा ही चौखा है । मतलब एक बार सत्ता की कुर्सी पर बैठ जाइये और फिर देखिए रंग । जाहिर है राजनीति की नींव डालने वालो ने इसका निर्माण देश के विकास के लिए किया लेकिन इस सत्ता की आड में ऐसी कई चीजों का विकास हो रहा है जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो । राजनीति के इस खेल में सबसे ज्यादा अगर किसी चीज को बढावा मिला तो वो है भ्रष्टाचार । परन्तु यदि भ्रष्टाचार को पनपने देने का आरोप यदि हम नेताओं,सरकारी कर्मचारियों या फिर पुलिस पर लगायें तो यह कुछ हद तक ही सही होगा । क्योंकि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती। हम इन सभी लोगो को भ्रष्टाचार का आरोपी कहते है पर कहीं न कहीं हम और आप जैसे आम लोग भी भ्रष्टाचार के बढावे में संलिप्त है । हर मनुष्य हर छोटे से छोटे काम को पूरा करवाने के लिए सबसे सरल व सुगम साधनो की तरफ पहले भागता है । पैसा देकर या लेकर हर कोई अपना काम निकलवाना चाहता है और वो इस काम में माहिर भी है । जब प्रत्येक मनुष्य इस रास्ते पर चल रहा है तो किसे भ्रष्टाचारी कहे और किसे नहीं ये समझ पाना शायद ही संभव हो । जिस दिन प्रत्येक मनुष्य स्वयं हित की बात को छोडकर देश हित की बात करेगा उस दिन से ही हमारा देश भ्रष्टाचार के राक्षस की गिरफत से आज़ाद होने लगेगा ।

Tuesday, February 3, 2009

भारत में शिक्षा बदहाल

आज के इस आधुनिक युग में हर मनुष्य चाहे वो स्त्री हो या पुरूष अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है और प्रत्येक मनुष्य इस के लिए भरसक प्रयत्न भी करता है ।
जिस प्रकार जीवन में रोटी, कपडा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यक्ताओ की पूर्ती के लिए पैसा कमाना अत्यन्त आवश्यक है उसी तरह मुख्य धारा से जुडे रहने के लिए अक्षर ज्ञान अति आवश्यक है क्योंकि बिना अक्षर ज्ञान के जीवन की विकटताऐं और अधिक बढ जाती है ।समस्त विश्व में भारत एक मात्र ऐसा देश है जो कि उसमें व्याप्त विविधताओ की वज़ह से जाना जाता है । परन्तु जिस प्रकार भारत के प्रत्येक राज्य के खान-पान,रहन-सहन व बोली में विविधता पाई जाती है उसी प्रकार सभी राज्यों के शिक्षा के स्तर में भी जमीन और आसमान का अंतर है । भारत के दक्षिण में स्थित राज्य केरल जहां कि कुल जनसंख्या का 90 फीसदी वर्ग शिक्षित है वहीं दूसरी और राजस्थान में केवल 40 फीसदी लोग ही शिक्षित है । पुरुष वर्ग व महिला वर्ग में भी शिक्षा के स्तर की खाई भी काफी गहरी है । राजस्थान व बिहार राज्यों में कई ईलाके ऐसे है जहां पर महिला वर्ग को शिक्षा से पूर्ण रूप से वंचित रखा गया है । मुख्यता देखा गया है कि शहरों में रहने वाले महिला वर्ग की अपेक्षा गांव में रहने वाली महिलाऐं शिक्षा में काफी पिछडी हुई है इस वर्ग में पिछडी जाति, पिछडी जनजाति व मध्यम वर्ग कि वो महिलाऐं है जो मुख्य धारा से या तो जुडना नहीं चाहती या फिर शायद मुख्य धारा में बहना उनके लिए संभव नहीं । भारत सरकार महिलाओं व बालिकाओं के शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए कई वर्षो से प्रयत्नरत है जिसके फलस्वरूप भारत व केन्द्र सरकार ने मिलकर 2001 में सर्व शिक्षा अभियान स्थापित किया । सर्व शिक्षा अभियान का उद्देशय 6 से 14 साल तक की सभी वर्ग के बच्चो को प्राथमिक शिक्षा उपलब्द्घ कराना है । इसके अलावा इस कार्यक्रम के तहत लडकियों,अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगो की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है । इस अभियान में बच्चो को निशुल्क पुस्तकें व ग्रामीण इलाकों में कम्पयूटर शिक्षा देने के लिए भी भरसक प्रयत्न किये जा रहे है । परन्तु इन सभी प्रयासो के बाद भी भारत में शिक्षा के स्तर का विकास काफी कम है । प्रत्येक दस वर्षों में भारत में शिक्षा का स्तर केवल 10 प्रतिशत ही बढता है जिसमें महिला वर्ग अभी भी पुरुष वर्ग से शिक्षा की इस दौड़ में काफी पीछे है । भारतीय सामाजिक दृष्टिकोण इस अंतर के लिए काफी हद तक जि़म्मेदार है । भले ही भारत की कमान श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जी के हाथ में हो जो स्वयं एक महिला है परन्तु भारत में अभी भी कई राज्य ऐसे है जहाँ लडकियों को पढाना तो दूर बल्कि उनका पैदा होना तक एक अभिशाप माना जाता है । यदि यही सोच भारतीयों के मन में रहीं तो भारत को एक विकसित देश बनने में न जाने और कितनी सदियां लग जाये ।

Sunday, February 1, 2009

मंदी की मार या अपराध का सशक्तिकरण
यह ग्लोबल मंदी का दुष्प्रभाव ही है जिसके कारणवश विश्व में लाखों लोग अब तक अपनी अजीविका का साधन खो चुके है और नए साधन खोजने में असमर्थ है । परन्तु मंदी की मार के दुष्प्रभाव से अपराधीकरण का एक नया संकट उत्पन्न हो रहा है । अगर दिल्ली व एन सी आर की बात करें तो चोरी,लूटपाट और यहाँ तक कि हत्या के मामले इतने मामूली हो गये है कि आए दिन हम इनके बारे में अखबारों में पढ़ सकते है । कभी ब्लूलाईन बसों को चार बदमाश रोककर यात्रियों को लूट लेते है तो कभी रिक्शा या आटो से घर जा रहे लोगो को बाईक सवार बंदूक की नोक पर लूटकर फरार हो जाते है । गौरतलब बात यह है कि बदमाशो के मनसूबे इतने कामयाब है कि दिन हो या रात, भीड भाड हो या फिर रेड़ लाइट वो लोग अपने काम को अंजाम देकर बिना किसी खौंफ के गायब हो जाते है और अपने पीछे पुलिस को सिर्फ हाथ मलता छोड़ जाते है । दिन ब दिन इन बढती वारदातों से आम आदमी के मन में खौफ बैठना लाज़मी है । ग्लोबल मंदी के जिस दौर से अभी समस्त विश्व गुजर रहा है शायद उससे आने वाले कुछ वर्षों में वो उबर जाएगा परन्तु अपराध का सशक्तिकरण यदि इसी प्रकार होता रहा तो उससे उबर पाना शायद असंभव हो जाए ।




सरिता शर्मा
फयुच्युरिसटिक मीडि़या कम्यूनिकेशन सेंटर दिल्ली

Friday, January 9, 2009

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